सनातन धर्म क्या है?

सनातन धर्म को हिन्दू धर्म और वैदिक धर्म के वैकल्पिक नाम से जाना जाता है जिसका इतिहास हज़ारों वर्ष पुराना है। सनातन धर्म दुनिया के सबसे प्रमुख धर्मों में से एक माना जाता है जिसका वर्णन धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है। यह भारत का सबसे बड़ा और मूल समूह है। भारत की 79.8% जनसंख्या सनातन धर्म की अनुयायी है। लेकिन लोगों के मन में अब भी कई सवाल आते हैं जैसे की सनातन धर्म क्या है, सनातन धर्म के नियम क्या हैं, सनातन धर्म के प्रतीक चिन्ह, आदि। तो आज हम जानेंगे की सनातन धर्म क्या है और इससे जुड़ी कुछ खास बातें।

सनातन धर्म क्या है

सनातन धर्म क्या है?

सनातन का अर्थ है ‘शाश्वत’ या ‘सदा बना रहने वाला’ है। सरल भाषा में कहें तो जिसका ना आदि है ना अन्त है वही सनातन है। सनातन धर्म को विश्व का सबसे पुराना धर्म माना जाता है क्योंकी इसका वर्णन वेद पुराणों में भी किया गया है। यानि सनातन धर्म वेदों पर आधारित धर्म है जिसे झूटलाया नहीं जा सकता। ब्रह्म सुत्र, गीता और उपनिषद सनातन धर्म के तीन आधार हैं जिसे ‘त्रिवेणी’ के नाम से भी जाना जाता है।

शाश्वत क्या है?

सनातन धर्म में शाश्वत का अर्थ ‘सत्य’ है। ‘सत्य’ दो शब्दों से मिलकर बना है सत् और तत्। सत् का अर्थ है यह और तत् का अर्थ है वह। यह दोनों ही सत्य है। जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी अंत ना हो, वही सत्य है। और इस सत्य को बताने वाला धर्म सनातन धर्म भी सत्य है यानि ये कहा जा सकता है कि ‘सनातन ही शाश्वत है’। 

सनातन धर्म के नियम

धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार हमने जाना सनातन धर्म क्या है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में ईश्वर आस्था और उनसे जुड़े प्रसंगो के अलावा सनातन धर्म के नियम यानि जीवन जीने के नियमों को भी विस्तार से समझाया गया है। हिन्दू धर्म और वैदिक धर्म के वैकल्पिक नाम से जाना जाने वाला सनातन धर्म के नियम भी बहुत सारे हैं। जिसे हर मनुष्य को अपनाना चाहिए। सनातन धर्म के नियमों से हमें ये पता चलता है कि धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हुए हम जीवन में कैसे कामयाब हो सकते हैं। आज सनातन धर्म के कुछ नियमों को विस्तार से जानेंगे जिसका पालन करके हम अपने जीवन को और भी बेहतर बना सकते हैं।

धर्म का पालन

सनातन धर्म का अर्थ है ‘शाश्वत’ यानि जो सत्य है। वेदों और ग्रंथों के अनुसार हमें हमारे धर्म का सदैव पालन करना चाहिए। सनातन धर्म के नियम के अनुकुल हर रोज़ ईश्वर का ध्यान और उनकी भक्ती करने से हमारे मन और आत्मा को शान्ति मिलती है। जिस कारण हम सारे कार्य सुख, शान्ति और ध्यान से कर पाते हैं। यह हमें जीवन जीने का सही तरीका सिखाता है। सनातन धर्म के नियम के अनुसार हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम कभी दुसरे धर्म का अपमान ना करें। 

सबसे बड़ा शत्रु ‘आलस्य’

हमारे सनातन धर्म के नियमों के अनुसार मनुष्य को कभी भी आलस नहीं करना चाहिए। आलस्य को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना जाता है। आलस करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी सफल नहीं हो पाता। जैसा की हमारे वेदों और धार्मिक ग्रंथों में कर्म को धर्म माना गया है। जो कि आलस्य भरे जीवन में संभव नहीं है। इसलिए सनातन धर्म के नियम के मुताबिक आलस्य छोड़कर ही जीवन में विजय की प्राप्ति हो सकती है।

भोजन का अनादर ना करें

सनातन धर्म के नियमों का पालन आवश्यक है। क्योंकि हमारे सनातन धर्म में हर बात के पीछे एक बहुत बड़ी वजह छूपी होती है। सनातन धर्म के नियमों के अनुसार भोजन का अपमान करना मतलब ईश्वर का अपमान करना है क्योंकि सनातन धर्म में अन्न को भगवान का दर्जा दिया गया है। सनातन धर्म के नियम अनुसार भोजन का अपमान करने वाले व्यक्ति को सुख की प्राप्ति कभी नहीं होती।

अच्छी आदत

ऐसा कहा जाता है की संगत हमेशा अच्छी होनी चाहिए क्योंकि इसका प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है। लेकिन ग्रंथों में कहा गया है कि कोई भी मनुष्य बुरा नहीं होता उसके कर्म बुरे होते हैं। तो इसका अर्थ यह है कि हमें मनुष्य के बुरी आदतों से दूरी बनाकर रखना चाहिए। इस संसार में हर व्यक्ति में कोई न कोई बुराई ज़रुर होती है। इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है की हमें सबसे दूरी बना लेनी चाहिए। सनातन धर्म के नियम के अनुसार हमें अपने आप पर इतना भरोसा और मन पर नियंत्रण होना चाहिए की हम बुरी आदतों से दूर रह सकें। क्योंकी बुरी आदत हमारे सफलता में बाधा डालती है।

अंधविश्वास से बचें

आज के समय अनुसार हर मनुष्य को सानतन धर्म के नियमों का पालन करना बेहद आवश्यक हो गया है। विश्वास किसी भी संबंध को जोड़े रखने या बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जिसके बिना किसी तरह के रिश्तों को बनाए रखना संभव नहीं है। विश्वास और अंधविश्वास के बीच एक अदृश्य रेखा होती है जिसको समझना बहुत ज़रुरी है। किसी पर विश्वास करना अच्छी बात हैं, लेकिन बिना कुछ सोचे समझे आंख बंद करके भरोसा करना अंधविश्वास कहलाता है। जिससे हमें बचने की आवश्यकता है। सनातन धर्म के नियम अनुसार किसी पर भी हद से ज्यादा विश्वास करना मुर्खता के बराबर है। क्योंकि ऐसा करने से कई लोग आपका गलत फायदा उठा सकते हैं।

सनातन धर्म के प्रतीक चिन्ह

सनातन धर्म क्या है

स्वास्तिक, धर्मचक्र, श्रीवत्स, कलश, शंख, पीपलवृक्ष, कमल, मछली, कछुआ, हाथी, त्रिरंग, त्रिशूल सनातन धर्म के 12 प्रतीक चिन्ह हैं। प्रत्येक प्रतीक चिन्ह, सनातन धर्म के अलग-अलग विशेष ज्ञान को परिभाषित करता है। जिनमें से कुछ चिन्हों के विशेष ज्ञान पर आज प्रकाश डालेंगे।

स्वास्तिक

सनातन धर्म के प्रतीक चिन्हों में से एक है स्वास्तिक। इस चिन्ह का सतातन धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है। यह शुभारंभ, पवित्रता, मंगलमय और ॐ का प्रतीक माना जाता है। स्वास्तिक की कई विभिन्न मान्यताएं हैं। इसकी रचना चार युगों को दर्शाती है सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग (कलयुग)। हिन्दू धर्म में स्वास्तिक बनाकर ही किसी शुभ कार्य की शुरुआत की जाती है। ऐसा माना जाता है की इससे सुख और शान्ति का वास होता है। 

धर्मचक्र

धर्मचक्र सनातन धर्म ज्ञान का प्रतीक है। धर्मचक्र चिन्ह की बात करें तो पूर्ण धर्मचक्र में कुल 24 डांडिया हैं। पहले तीन खंड आत्मा, मन और प्राण के पिंडउर्जा को दर्शाता है। हर खंड में 7 डांडिया जो उनके विशेष गुणों और सनातन धर्म के नियम को दर्शाता है।
 

  • पहला खंड ‘आत्मा’ इसके 7 संस्कार हैं- मुक्ति, आनंद, ज्ञान, शांति, सुख, प्रेम, पवित्रता, शक्ति। यह अर्थ की पूर्ति करता है। 

  • दुसरा खंड ‘मन’ इसकी 7 अवस्थाएं हैं। शुन्य, चेतन, अर्ध चेतन, अवचेतन, भावना, रचना, स्वभाव और अर्धनारद। यह धर्म की पूर्ति करता है। 

  • तीसरा खंड ‘प्राण’ इसके भी 7 संस्कार हैं। शौच, स्नान, पानी, व्यायाम, ध्यान, आहार, नींद और काम। यह कर्म की पूर्ति करता है। 

 

सनातन धर्म के नियम के अनुसार यह मान्यता है की जो व्यक्ति धर्म, कर्म और अर्थ को पूरी तरह से धारण कर लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

श्रीवत्स

श्रीवत्स चिन्ह को सनातन धर्म में मंगलकारी चिन्ह माना जाता है। श्रीवत्स चिन्ह की कई सारी अलग-अगल मान्यताए हैं जिसका वर्णन कम शब्दों में नहीं किया जा सकता। हालांकि इसे भगवान का प्रतीक भी माना जाता है। 

शंख

सनातन धर्म में शंख समृद्धि, प्रसिद्धि एवं ऊर्जा का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है की शंख नाद की ध्वनि सुनकर मनुष्य को सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि, प्रसिद्धि आदि की प्राप्ति होती है, और नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है। सनातन धर्म के नियम की बात की जाए तो किसी भी कार्य में प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए उस कार्य को करते समय व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा होना जरुरी है। 

मछली

सनातन धर्म में दो मछलियों का चिन्ह काम और प्रेम का प्रतीक हैं। ऐसा माना जाता है की पृथ्वी पर काम और प्रेम भाव सबसे पहले मछलियों के मन में उत्पन्न होते हैं। सबसे ज्यादा कामवासना एक नर मछली और सर्वाधिक प्रेमभाव एक मादा मछली के मन में उत्पन्न होती है। सनातन धर्म के नियम अनुसार एक विवाहित जीवन को सुख, शान्ति और आनंदित तरह से जीने के लिए मनुष्य के मन में इन दोनों भाव का होना आवश्यक है। यह 2 मछलियों का चिन्ह मनुष्य को काम और प्रेम भाव की याद दिलाता है।

कछुआ

कछुआ चिन्ह को दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है। कछुआ चिन्ह मनुष्य को लंबी आयु यानि दीर्घायु और स्वास्थ जीवन पाने के लिए प्रेरित करता है। क्योंकि पृथ्वी पर कछुआ ही एक मात्र ऐसा प्राणी है जिसकी आयु लंबी होती है इसलिए कछुआ चिन्ह को सनातन धर्म में दीर्घायु का प्रतीक कहा गया है।

हाथी

सनातन धर्म में हाथी को आनंद, ज्ञान,और शांति का प्रतीक माना गया है। पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों में से एकमात्र हाथी ही ऐसा जीव है, जिसके मन में आनंद, साक्षी और शांति ये तीनों ईश्वरीय भाव सबसे ज्यादा उत्पन्न होते हैं। इसलिए सनातन धर्म में हाथी चिन्ह को तीनों ईश्वरीय भाव का प्रतीक माना गया है।

त्रिरंग

त्रिरंग पिंडऊर्जा का प्रतीक है। पृथ्वीलोक पर हर व्यक्ति को स्वयं में एक पिंडऊर्जा माना गया है। मनुष्य के भीतर आत्मा, मन, प्राण आदि 3 भिन्न पिंडऊर्जा होती है। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार आत्मा का रंग नीला, मन का रंग पीला, प्राण का रंग लाल होता है। जो एकजुट होकर एक पिंडऊर्जा की तरह कार्य करते है, इसलिए सनातन धर्म में मनुष्य के भीतर मौजूद आत्मा, मन, प्राण आदि 3 भिन्न पिंडऊर्जा को त्रिरंग कहते है। त्रिरंग पिंडऊर्जा का प्रतीक है।

त्रिशूल

सनातन धर्म के बारह प्रतीक चिन्हों में से एक है त्रिशूल जो परमशांति आयाम, पिंडऊर्जा की 3 अवस्था, अजर-अमर, एवं मृत्यु का प्रतीक है। त्रिशूल मनुष्य को परमशांति प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।

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